सांख्यदर्शन के गुणों की वैज्ञानिक व्याख्या

ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities (SPIJSH)

ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities

Open Access, Multidisciplinary, Peer-reviewed, Monthly Journal

Call For Paper - Volume: 1, Issue: 12, December 2024

DOI: 10.70558/SPIJSH

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Impact Factor: 6.54

Article Title

सांख्यदर्शन के गुणों की वैज्ञानिक व्याख्या

Author(s) Dr. Rishika Verma.
Country India
Abstract

सांख्यशास्त्र के अनुसार शुक्लवर्णधर्मा प्रकाश सत्त्वगुण है, कृष्णवर्णधर्मा विदग्ध द्रव्य तमोगुण। विज्ञान का फोटोन और न्यूट्रोन पदार्थ उपर्युक्त सत्त्व और तम इन दोनों पदार्थों से अपना बहुत कुछ साम्य रखता है। तमोगुण की द्रव्यराशि का स्वरूप अचल और जड़ है। रजोगुण के प्रवर्तक वेग से संयुक्त होने पर वह तन्मात्र रूप से सक्रिय हो उठती है। रजोगुण ऊर्जाधर्मी सक्रियता का प्रवत्क बलवेग है। प्रलयकाल में यह क्रमशः अपनी उत्तरोत्तर अवस्थाओं में निष्क्रियता की ओर बढ़ता हुआ-अन्त में बलमात्रक के रूप में अचल हो जाता है। वही सृष्टिकाल में ऊर्जा के रूप में सक्रिय होता हुआ सत्त्वगुण और तमोगुण को एकाकार कर देता है। इन गुणत्रय के सम्मिलित विक्षोभ से ही इस मनौभौतिक विश्व का विस्फोट होता है। इससे पूर्व की द्रव्यावस्था के दो स्तर और हैं- (1) महतत्त्व और (2) अहंकार। प्रकृति का ही महतत्त्व के रूप में प्रथम परिणाम है, इसका द्वितीय परिणाम अहंकार है, जो आगे चलकर इन्द्रिय, तन्मात्र और तज्जन्य पंचमहाभूतों के रूप में प्रकट होता है।

Area Philosophy
Published In Volume 1, Issue 8, August 2024
Published On 31-08-2024
Cite This Verma, R. (2024). सांख्यदर्शन के गुणों की वैज्ञानिक व्याख्या. ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities, 1(8), pp. 31-39.

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