| Article Title |
सप्त सिंधु क्षेत्र में गोत्र परंपरा: एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अध्ययन |
| Author(s) | SOM CHAND, Rohan Sharma. |
| Country | India |
| Abstract |
“सप्त सिंधु क्षेत्र” भारतीय सभ्यता के उद्भव और विकास का प्राचीनतम सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है। यह क्षेत्र वैदिक समाज के गठन, धार्मिक विचारों और सामाजिक संरचनाओं की नींव का प्रतीक रहा है। सात नदियों से सिंचित यह भूमि समृद्ध कृषि और ज्ञान परंपरा के लिए प्रसिद्ध रही। इसी क्षेत्र में प्रारंभिक वैदिक ग्रंथों की रचना और सामाजिक संस्थाओं का विकास हुआ। इस प्रकार, सप्त सिंधु क्षेत्र भारतीय सांस्कृतिक विरासत की ऐतिहासिक निरंतरता का जीवंत प्रमाण है। यह शोध-पत्र सप्त सिंधु क्षेत्र में विद्यमान गोत्र परंपरा की ऐतिहासिक उत्पत्ति, सामाजिक संरचना एवं सांस्कृतिक प्रासंगिकता का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। वैदिक काल में सप्त सिंधु क्षेत्र (मुख्यतः आधुनिक पंजाब, हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्र, हरियाणा, राजस्थान और पाकिस्तान के कुछ हिस्से) भारतीय सभ्यता की उद्गम स्थली रहा है, जहाँ ऋषियों के नाम पर गोत्र परंपरा की नींव रखी गई। यह परंपरा न केवल रक्त वंशानुक्रम का संकेतक रही, बल्कि विवाह की निषेध सीमाओं और सामाजिक वर्गीकरण का भी आधार बनी। शोध में यह पाया गया कि गोत्र व्यवस्था ने वैदिक समाज में जातीय एकता, पवित्रता की अवधारणा तथा सामाजिक नियंत्रण की एक सशक्त व्यवस्था प्रदान की। आधुनिक काल में, जबकि समाज गतिशील रूप से बदल रहा है, यह परंपरा कई क्षेत्रों में जीवित है, वहीं कुछ स्थानों पर यह केवल सांस्कृतिक प्रतीक बनकर रह गई है। इस अध्ययन के माध्यम से गोत्र को केवल एक धार्मिक अथवा वंशानुक्रमिक तत्व न मानकर, उसे एक सामाजिक संस्था के रूप में देखने का प्रयास किया गया है जो वैदिक और समकालीन समाज दोनों की संरचना को प्रभावित करती है। |
| Area | Sociology |
| Issue | Volume 2, Issue 10 (October 2025) |
| Published | 2025/10/30 |
| How to Cite | CHAND, S., & Sharma, R. (2025). सप्त सिंधु क्षेत्र में गोत्र परंपरा: एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अध्ययन. ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities, 2(10), 213-220, DOI: https://doi.org/10.70558/SPIJSH.2025.v2.i10.45381. |
| DOI | 10.70558/SPIJSH.2025.v2.i10.45381 |
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