Article Title |
बौद्धकालीन साहित्यमे अभिव्यक्त कृषि-कर्म |
Author(s) | राजनाथ पंडित . |
Country | India |
Abstract |
बौद्ध कालमे खेती-बाड़ीक समुचित विकास भेल छल आ ई लोकक मुख्य व्यवसाय छल । सामाजिक प्रतिष्ठामे कृषिक उच्च स्थान छल आ किसान महत्वपूर्ण मानल जाइत छल । बौद्ध कालमे खेती मात्र रोजी-रोटीक साधन नहि, अपितु एकटा महत्वपूर्ण सामाजिक आ नैतिक कार्य सेहो मानल जाइत छल । एहि कालखंडमे कृषिक महत्व एहि बातसँ स्पष्ट अछि जे तथागत बुद्ध स्वयं आ हुनक अनुयायी लोकनि सेहो कृषि कार्यमे लागल छलाह । बौद्ध कालमे कृषि आ पशुपालन दुनू महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि छल आ एक दोसरासँ घनिष्ठ संबंध छल । तथागत बुद्ध पशु बलिक विरोध करैत छलाह आ पशुधनक संरक्षणकेँ महत्वपूर्ण मानैत छलाह । एहि कालमे कृषि आ पशुपालनक बीच अंतर्निहित संबंध छल । गायक रक्षा गृहस्थक एकटा महत्वपूर्ण कर्तव्य मानल जाइत छल । लोहाक हऽरक प्रयोग खेतीमे क्रांति अनलक आ पशु बलिक विरोध पशुधनक सुरक्षाकेँ उच्च स्थान देलक । जमीनक वर्गीकरण ओकर उर्वरताक आधार पर होइत छल आ कृषि काजक संग धार्मिक संस्कार सेहो होइत छल । भगवान बुद्ध किसानक कर्तव्य आ कृषिक महत्व पर प्रकाश दैत अछि । ग्रन्थमे बौद्ध कालमे कृषिक महत्वपूर्ण भूमिका आ विभिन्न फसिलक खेतीक तरीका पर प्रकाश देल गेल अछि । धानक खेतीक विशेष महत्व देल गेल अछि आ एकरा मोक्ष प्राप्त करबाक मार्ग मानल जाइत अछि । खेतक रक्षाक उपाय कयल गेल आ अन्य फसिलक संग कुसियारक खेती सेहो महत्वपूर्ण छल । कृषि पद्धति आ फसिलक विविधताक वर्णन बौद्ध ग्रंथमे भेटैत अछि । जातक कथा सभसँ पता चलैत अछि जे किसान अपन फसिल चुनबा लेल स्वतंत्र छलाह आ खेती प्रणालीमे नव तकनीकक प्रवेश केलथि । धान ओहि समयक मुख्य फसिल आ लोकक प्रिय भोजन छल । अन्य फसिल जेना जौ, कपास, दालि, तिल, चिनिया बदाम, मटर, उड़िद, सरिसो आ मसूरी उल्लेख सेहो अछि । बौद्ध कालमे कृषिक महत्वपूर्ण भूमिका आ विभिन्न फसिलक खेतीक तरीका पर प्रकाश देल गेल अछि । भिन्न-भिन्न प्रकारक फसिल, मसल्ला आ तरकारीक खेती होइत छल आ खेतीक काजमे विभिन्न प्रकारक हथियारक उपयोग होइत छल । खेती अर्थव्यवस्थाक मुख्य आधार मानल जाइत छल आ पशुधन पर निर्भर छल । |
Area | Literature |
Issue | Volume 2, Issue 3, March 2025 |
Published | 31-03-2025 |
How to Cite | , . . (2025). बौद्धकालीन साहित्यमे अभिव्यक्त कृषि-कर्म. ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities, 2(3), 90-96, DOI: https://doi.org/10.70558/SPIJSH.2025.v2.i3.45151. |
DOI | 10.70558/SPIJSH.2025.v2.i3.45151 |