ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities (SPIJSH)

ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities

Open Access, Multidisciplinary, Peer-reviewed, Monthly Journal

Call For Paper - Volume: 2, Issue: 1, January 2025

DOI: 10.70558/SPIJSH

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Impact Factor: 6.54

भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं की ऐतिहासिक भूमिका पर शोधपरक दृष्टि

सुधीर कुमार

शोधार्थी, इतिहास विभाग, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ।

शोध सार :

वर्ष 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक घटना थी। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू किया गया था, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से तत्काल भारत छोड़ने की मांग की थी। गांधीजी ने इस आंदोलन के दौरान ‘करो या मरो’ का ऐतिहासिक नारा दिया था। इस नारे ने पूरे देश को एकजुट कर दिया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक सशक्त संघर्ष को प्रारंभ किया। आंदोलन के दौरान आजादी की प्रबल इच्छा के साथ लाखों भारतीयों ने हिस्सा लिया था। इसमें सभी आयु वर्ग और विभिन्न पृष्ठभूमि की महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक तरफ, इस आंदोलन में भाग लेने वाली उषा मेहता तब केवल 22 वर्ष की थीं, वहीं दूसरी तरफ मातंगिनी हाजरा की उम्र तब 73 वर्ष थी। इस आंदोलन में भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमि वाली महिलाओं ने अपना सहयोग दिया था, जो यह दर्शाता है कि यह आंदोलन पूरे समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा समर्थित था। बतौर उदाहरण अरुणा आसफ अली और सुचेता कृपलानी जहां एक राजनीतिज्ञ परिवार से संबंध रखती थीं, वहां सुमति मोरारजी का संबंध औद्योगिक घराने से था। आंदोलन का भूमिगत नेतृत्व करने वाली उषा मेहता तब बंबई के विल्सन कॉलेज में पढ़ रही थीं और मातंगिनी हाजरा एक किसान परिवार से ताल्लुकात रखती थीं। इस विविधता ने आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन और दृढ़ता प्रदान की। भारत छोड़ो आंदोलन में अनेकानेक महिलाओं ने भिन्न-भिन्न प्रकार से अपना अहम योगदान दिया। यह लेख कुछ प्रमुख महिलाओं के योगदान को गंभीरता से समझने की कोशिश करती है।

बीज शब्द: आंदोलन, नायिका, क्रांति, बलिदान, विद्रोहिणी, साहस, समर्पण, बूढ़ी गांधी।

मूल आलेख:

भारत छोड़ो आंदोलन का स्मरण महिलाओं के योगदान पर चर्चा किए बगैर आगे बढ़ना ‘ऐतिहासिक असमानता’ होगी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका अद्वितीय और महत्वपूर्ण रही है। निःसंदेह यह भूमिका सिर्फ घरेलू सीमाओं तक सीमित नहीं थी। महिलाओं ने न केवल अपने परिवारों का संचालन करके पुरुषों को स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह से जुटने की स्वतंत्रता दी, बल्कि जब भी आवश्यकता पड़ी उन्होंने खुद भी इस आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। महात्मा गांधी के ‘करो या मरो’ के आह्वान पर महिलाओं ने बहादुरी से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, सभाएं आयोजित कीं और यहां तक कि जेल यात्राएं भी कीं।

विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं ने स्वतंत्रता की लौ जलाए रखने का कार्य किया। इनमें अरुणा आसफ अली, उषा मेहता, सुचेता कृपलानी जैसी महिलाएं इस आंदोलन में अग्रणी रहीं। उन्होंने सिर्फ भाषण देने या जुलूस निकालने का ही काम नहीं किया, अपितु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की एकाएक हुई गिरफ्तारी के बाद भूमिगत गतिविधियों में भी सम्मिलित होकर क्रांतिकारी कदम भी उठाए। इसके अलावा, गांव-गांव में अनगिनत अज्ञात महिलाओं ने अपनी सीमाओं को तोड़ते हुए आंदोलन के संदेश को फैलाने और ब्रिटिश राज के खिलाफ जनसमर्थन जुटाने का काम किया। यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाओं के इस योगदान ने आंदोलन को एक नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की, जिससे ब्रिटिश शासन का अंत नजदीक आ गया। भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं का यह योगदान यह सिद्ध करता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका किसी भी प्रकार से पुरुषों से कमतर नहीं थी, और उनके बिना यह संघर्ष अधूरा रहता। ऐसी ही कुछ महिलाओं के योगदान को इस शोध आलेख के माध्यम से देखने की कोशिश की गई है:

अरुणा आसफ अली : अरुणा आसफ अली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख नायिका थीं,जिनका योगदान 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उनका साहसिक कार्य और नेतृत्व स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमिट छाप छोड़ने वाला था। उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन की नायिका कहकर भी संबोधित किया जाता है। दरअसल, आठ अगस्त, 1942 को बंबई (अब मुंबई) के ग्वालिया टैंक मैदान में कांग्रेस नेताओं की एक महत्वपूर्ण सभा हुई थी। इस सभा में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत के लिए रणनीतियां तय की गई थीं। लेकिन, नौ अगस्त की सुबह महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य प्रमुख कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके साथ ही, मैदान में धारा 144 लागू कर दी गई, जिससे सार्वजनिक सभाएं और प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई। इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद, अरुणा आसफ अली ने मैदान में पहुंचकर एक संक्षिप्त भाषण दिया और तिरंगा झंडा फहराया था। इस कार्रवाई ने क्रांतिकारियों में नई ऊर्जा भर दी और आंदोलन को भटकाव की दिशा में बढ़ने से रोका। अरुणा की यह साहसिकता आंदोलन के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बनी और उन्होंने इस संघर्ष को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ब्रिटिश सरकार ने अरुणा आसफ अली को तोड़फोड़ करने वाली ‘क्रांतिकारिणी’ घोषित कर दिया और उनकी गिरफ्तारी के लिए पांच हजार रुपये के इनाम की घोषणा की। ब्रिटिश पुलिस से बचने के लिए,अरुणा ने भूमिगत नेतृत्व प्रदान किया और छिपकर आंदोलन का संचालन किया।इस दौरान उनके पीछे सीआईडी भी लगी रही, जो उन्हें पकड़ने के लिए लगातार प्रयासरत थी। नौ अगस्त 1942 से 26 जनवरी 1946 तक अरुणा अज्ञातवास में रहीं। इस दौरान,उन्होंने ‘गुप्त रेडियो’ के प्रसारण में सहायता था। उन्होंने ‘इंकलाब’ नामक एक पत्रिका की शुरुआत भी की थी, जिसका संपादन राम मनोहर लोहिया के साथ किया करती थीं। यह पत्रिका स्वतंत्रता संग्राम के विचारों और आंदोलनों को फैलाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनी। बहरहाल, अरुणा आसफ अली के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को उनकी निस्वार्थ सेवा और संघर्ष के लिए सदैव याद किया जाएगा। उनके बलिदान और संघर्ष ने उन्हें ‘वयोवृद्ध महिला’ (ग्रैंड ओल्ड लेडी) का सम्मान दिलाया। महात्मा गांधी ने उन्हें विशेष सम्मान देते हुए कहा था, “अरुणा मेरी पुत्री है, भले ही यह विद्रोहिणी हो या मेरे घर में पैदा न हुई हो,पर मेरे लिए तो वह हर हालत में मेरी पुत्री ही रहेगी।“

उषा मेहता : भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उषा मेहता ने जो भूमिगत नेतृत्व प्रदान किया, वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक है। नौ अगस्त, 1942 को जब प्रमुख कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, तब आंदोलन की भूमिगत रहते हुए अगुवाई करने और क्रांति की ज्वाला को बनाए रखने के लिए उषा मेहता ने ‘कांग्रेस रेडियो’ की स्थापना की थी। यह एक गुप्त रेडियो स्टेशन था,जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संदेश और सूचनाओं का प्रसारण करता था। उस समय उषा मेहता मात्र 22 वर्ष की थीं और बंबई के विल्सन कॉलेज में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही थीं। गांधीजी के ‘भारत छोड़ो’ के आह्वान ने उषा मेहता को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी का निर्णय लिया। कांग्रेस रेडियो की स्थापना में उनकी मदद शिकागो रेडियो के मालिक नानिक मोटवाने ने की। इस गुप्त रेडियो का संचालन 14 अगस्त, 1942 से शुरू हुआ। 27 अगस्त, 1942 को कांग्रेस रेडियो के प्रथम प्रसारण में गांधीजी के रिकॉर्डेड संदेश,राष्ट्रवादी गीत और अन्य नेताओं के भाषण प्रसारित किए गए। प्रसारण की जगह गुप्त रखी जाती थी, ताकि ब्रिटिश पुलिस और खुफिया विभाग इसका पता न लगा सकें।रेडियो प्रसारण की शुरुआत ‘हिंदुस्तान हमारा’ गीत से होती थी और समापन के वक्त ‘वंदे मातरम’ बजता था। हालांकि, यह गुप्त रेडियो स्टेशन अधिक समय तक संचालन में नहीं रह सका। 12 नवंबर,1942 को ब्रिटिश पुलिस और खुफिया विभाग ने इसे खोज निकाला और उषा मेहता तथा नानिक मोटवाने को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार होने के बावजूद,उषा मेहता का योगदान अमूल्य था। उनके द्वारा संचालित गुप्त रेडियो ने धर्मनिरपेक्षता, अंतर्राष्ट्रीयता, भाईचारे और स्वतंत्रता का संदेश फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उषा मेहता के इस योगदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नए अध्याय की शुरुआत की और यह साबित कर दिया कि भारतीय युवाओं में देशप्रेम और स्वतंत्रता की ललक किस कदर थी। उनका साहस और समर्पण आज भी हमें प्रेरित करता है।

सुचेता कृपलानी : सुचेता कृपलानी देश की एक प्रमुख महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्हें देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त है। वह 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं, जो भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। 1940 में स्थापित अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की संस्थापक सदस्य के रूप में सुचेता कृपलानी ने महिलाओं की राजनीतिक और सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और इस दौरान भूमिगत रहते हुए आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। महात्मा गांधी के शब्दों में, सुचेता कृपलानी असाधारण साहस और चरित्र की महिला थीं, जिन्होंने भारतीय नारीत्व को गौरव दिलाया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनकी भूमिगत गतिविधियों और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योगदान के कारण उन्हें 1944 में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। जेल में रहते हुए भी उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की भावना को जीवित रखा और अन्य कैदियों को प्रेरित किया।सुचेता कृपलानी का योगदान केवल स्वतंत्रता संग्राम तक ही सीमित नहीं था; उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भी सामाजिक और राजनीतिक सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने प्रशासनिक सुधारों और विकास कार्यों को प्राथमिकता दी, जिससे उत्तर प्रदेश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। सुचेता कृपलानी का जीवन और कार्य भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी साहस, समर्पण और नेतृत्व क्षमता ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी बल्कि स्वतंत्र भारत में महिलाओं की भूमिका को भी नया आयाम दिया।

मतांगिनी हाजरा : मतांगिनी हाजरा एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मतांगिनी हाजरा ने बंगाल के पूर्वी क्षेत्र में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया था। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इस नायिका को भारतीय इतिहास की मुख्यधारा में यथोचित सम्मान से वंचित रखा गया। मतांगिनी हाजरा को न केवल स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है, बल्कि राष्ट्रीय जीवन में महिलाओं के महत्व को बनाए रखने के लिए भी स्मरण किया जाता है। वह साहस और समर्पण की प्रतिमूर्ति और लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। गांधी के विचारों का निष्ठा के साथ अनुसरण करने के कारण ही उन्हें ‘बूढ़ी गांधी’ या ‘वृद्ध महिला गांधी’ कहा जाता है।

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 72 वर्ष की आयु होने और एक विधवा होने के बावजूद उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए लड़ी जा रही लड़ाई में अपना योगदान अदम्य साहस के साथ दिया था। उन्होंने स्थानीय लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और आंदोलन के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाई। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बंगाल के तामलुक अदालत और पुलिस स्टेशन के सामने छह हजार प्रदर्शनकारियों को नेतृत्व प्रदान कर विरोध प्रदर्शन की थी। ब्रिटिश पुलिस द्वारा रोके जाने के बाद भी वह नहीं रूकी। 29 सितंबर,1942 को पुलिस की गोलीबारी के दौरान उन्हें तीन गोलियां लगीं। गोली लगने के बाद भी वह ‘वंदे मातरम्’ और ‘मातृभूमि की जय’ का नारा लगाती रहीं और उन्होंने इस दौरान तिरंगे झंडे को गिरने नहीं दिया। उनकी मृत्यु हाथों में तिरंगा झंडा लहराते ही हो गई।बंगाल के तामलुक में कार्यरत तत्कालीन राष्ट्रीय सरकार ( समानांतर सरकार ) ने मातंगिनी की शहादत की प्रशंसा अपने मुखपत्र ‘विप्लवी’ में की थी। उनकी मौत ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध की एक शक्तिशाली प्रतीक बन गई। निश्चय ही मतांगिनी हाजरा के बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उन्हें एक अमिट स्थान दिलाया।

सुमति मोरारजी : भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सुमति मोरारजी का नाम अग्रणी समर्थकों में शामिल था। वह बाद में भारत की प्रमुख महिला उद्योगपतियों में से एक बनीं। नौ अगस्त,1942 को जब कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद आंदोलन भूमिगत हो गया, तब कई उद्योगपतियों ने भूमिगत स्तर पर आंदोलन की बागडोर संभालने वाले नेताओं को आर्थिक सहयोग प्रदान किया। इनमें से एक प्रमुख नाम सुमति मोरारजी का था।

सुमति मोरारजी ने आंदोलन के महत्वपूर्ण नेता अच्युत पटवर्धन के लिए आर्थिक और अन्य प्रकार की मदद प्रदान की। उन्होंने पटवर्धन को पुलिस से बचाने के लिए उनके लिए रोज एक नई कार की व्यवस्था की, जिससे वे बार-बार स्थान बदलकर पुलिस की गिरफ्तारी से बच सकें। उनके इस योगदान ने आंदोलन को बनाए रखने और आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुमति मोरारजी का यह साहसिक कदम यह दर्शाता है कि उस समय के उद्योगपति भी देश की स्वतंत्रता के लिए सक्रिय रूप से योगदान दे रहे थे, भले ही उनका कार्य सार्वजनिक रूप से नजर न आए। सुमति मोरारजी के इस योगदान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के रूप में याद किया जाता है और यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनकी इस निस्वार्थ सेवा और देशभक्ति ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान दिलाया।

निष्कर्ष :

हालांकि, इसके अलावा कई अन्य महिलाएं भी थीं, जिन्होंने इस आंदोलन में कम या अधिक योगदान दिया था। ऐसी कई महिलाएं आज भी कई गुमनाम हैं और उनकी भूमिका के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। शायद आने वाले समय में उनके योगदान का अध्ययन हो पाए और उन्हें इतिहास में उचित स्थान मिल सके। इन सभी महिलाओं का योगदान स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमूल्य है और उनकी साहसिक कहानियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। महिलाओं का यह व्यापक योगदान यह सिद्ध करता है कि स्वतंत्रता संग्राम केवल पुरुषों का आंदोलन नहीं था, बल्कि इसमें महिलाओं का भी समान रूप से महत्वपूर्ण और साहसिक योगदान रहा है। यह उनके अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक है,जिसने भारत को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया।

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