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Author(s):
Sudhir Kumar.
Country:
India
Research Area:
History
Page No:
1-6 |
भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं की ऐतिहासिक भूमिका पर शोधपरक दृष्टि
Abstract
वर्ष 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक घटना थी। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू किया गया था, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से तत्काल भारत छोड़ने की मांग की थी। गांधीजी ने इस आंदोलन के दौरान ‘करो या मरो’ का ऐतिहासिक नारा दिया था। इस नारे ने पूरे देश को एकजुट कर दिया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक सशक्त संघर्ष को प्रारंभ किया। आंदोलन के दौरान आजादी की प्रबल इच्छा के साथ लाखों भारतीयों ने हिस्सा लिया था। इसमें सभी आयु वर्ग और विभिन्न पृष्ठभूमि की महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक तरफ, इस आंदोलन में भाग लेने वाली उषा मेहता तब केवल 22 वर्ष की थीं, वहीं दूसरी तरफ मातंगिनी हाजरा की उम्र तब 73 वर्ष थी। इस आंदोलन में भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमि वाली महिलाओं ने अपना सहयोग दिया था, जो यह दर्शाता है कि यह आंदोलन पूरे समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा समर्थित था। बतौर उदाहरण अरुणा आसफ अली और सुचेता कृपलानी जहां एक राजनीतिज्ञ परिवार से संबंध रखती थीं, वहां सुमति मोरारजी का संबंध औद्योगिक घराने से था। आंदोलन का भूमिगत नेतृत्व करने वाली उषा मेहता तब बंबई के विल्सन कॉलेज में पढ़ रही थीं और मातंगिनी हाजरा एक किसान परिवार से ताल्लुकात रखती थीं। इस विविधता ने आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन और दृढ़ता प्रदान की। भारत छोड़ो आंदोलन में अनेकानेक महिलाओं ने भिन्न-भिन्न प्रकार से अपना अहम योगदान दिया। यह लेख कुछ प्रमुख महिलाओं के योगदान को गंभीरता से समझने की कोशिश करती है।
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Author(s):
Awadhesh Kumar, Dr. Shivrajsingh Yadav.
Country:
India
Research Area:
Geography
Page No:
7-11 |
पर्यावरण क्षरण पर जनसंख्या वृद्धि का प्रभावः भारत के संदर्भ में
Abstract
यह शोध पत्र जनसंख्या वृद्धि और इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर केंद्रित है, विशेष रूप से विकासशील देशों में तेजी से बढती जनसंख्या को वैश्विक संकट के रूप में देखा जा रहा है। इसमें बताया गया है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण पर गहरा असर पडता है, जिससे सतत विकास की चुनौतियां उत्पन्न होती हैं। पर्यावरणीय क्षरण के प्राथमिक कारणों में जनसंख्या वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया गया है, जो भूमि क्षरण, वन हानि, जैव विविधता के नुकसान, और ऊर्जा की बढती मांग जैसी समस्याओं को बढावा देती है।भारत, जो दुनिया की दूसरी सबसे बडी आबादी वाला देश है, इस जनसंख्या वृद्धि और पर्यावरणीय गिरावट के बीच एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है। भारत की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिसका नकारात्मक प्रभाव वायु प्रदूषण, वैश्विक ऊष्मन और जलवायु परिवर्तन के रूप में सामने आ रहा है। इस संदर्भ में, वैश्विक जनसंख्या वृद्धि और इसके प्रभावों की विस्तृत चर्चा की गई है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के अनुसार 2023 तक भारत के दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने की संभावना जताई गई है।
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Author(s):
Satyen Barman.
Country:
India
Research Area:
Sanskrit
Page No:
12-17 |
धर्मशास्त्रे प्रतिपादितं प्रायश्चित्तविमर्शः
Abstract
सारांश- भारतीयेषु वाङ्मये सर्वाधिकं चर्चितं सुप्रसिद्धं च महत्त्वपूर्णं धर्मशास्त्रं स्मृतयः इति एव कथ्यते। यासु सर्वोत्कृष्टा मनुस्मृतिः। सा मनुसंहिता मानवधर्मशास्त्रं मानवशास्त्रं च इति नामभिः अपि प्रसिद्धा। प्रसन्नता मानवस्य जन्मसिद्धः अधिकारः अस्ति, यस्मिन मानवस्य सर्वहितं समाहितं भवति, एषः एव जीवनस्य मूलमन्त्रः अपि अस्ति। अस्य समर्थनं अस्माकं विद्वद्भिः अपि कृतम्।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्॥
अस्य उक्त्या सिद्धं भवति यत् भारतीयसंस्कृतेः प्रथमं उद्देश्यं सर्वेषां हितार्थं अस्ति। धर्मशास्त्रेषु अपि अस्माकं जीवनस्य उद्देश्यं पूर्णं कर्तुं सद्मार्गस्य अनुकरणं अत्यधिकं बलं दत्तम् अस्ति। तस्य कारणं यत् व्यक्तिः यदा सद्मार्गेण नीत्या शासनव्यवस्थायाः अनुरूपं कार्यं करिष्यति तदा सः न नीतिमार्गतः भ्रंश्येत न च पापकर्मणि लिप्तः भविष्यति। अस्माकं स्मृतिषु पापकर्मणः उपरान्त प्राप्तव्यः दण्डः च प्रायश्चित्तं च विस्तरेण वर्णितं अस्ति, येन वयं अस्माकं अधिकारान् तेषां च हननानन्तरं दण्डं च भलीकृत्य ज्ञातुं शक्नुमः। समाजस्य परिवर्तनशीलगुणस्य कारणेन अद्यत्वे पूर्वकालेभ्यः अनेकेषु क्षेत्रेषु परिवर्तनानि अभवन्। अद्यतनी न्यायव्यवस्था पूर्णतया परिवर्तिता जाता अस्ति। पूर्वकालस्य दण्डः न्यायव्यवस्था च दोषिनं सुधारयितुं तस्य च हितार्थं दत्ता जाता, राजा सम्पूर्णायाः प्रजायाः न्यायं दातुं अधिकारी आसीत्। किन्तु अद्य काले पापकर्मभिः आच्छादितं जातम्। अनेन काले धर्मसूत्राणि स्मृतयः च यथायोग्यं प्रासङ्गिकतया स्वीकर्तव्यानि। पूर्वकालस्य दण्डव्यवस्था प्रायश्चित्तं च अद्यतनीदण्डव्यवस्थायाः मध्ये समयस्य व्यापकता, अपराधस्य अधिकता, अत्यधिकं अपराधिकप्रवृत्तीनां बहुलता, सामाजिकनैतिकमूल्येषु च परिवर्तनं कारणं भवति। एतयोः व्यवस्थयोः मध्ये दोषिनं सज्जनं कर्तुं, तस्य च प्रायश्चित्तं स्वदोषस्य परिहारं च मुख्यं उद्देश्यं अस्ति येन पापकर्मणि नश्यन्ति। अतः अस्य विषये प्रासङ्गिकतायाः विचारं कुर्वन्तु धर्मशास्त्रेषु प्रतिपादितं प्रायश्चित्तविमर्शस्य सूक्ष्मविवेचनं अति आवश्यकम्। एतेन वयं आगामिकाले दोषरहितं समाजं निर्मातुं प्रयासं कर्तुं शक्नुमः। अस्माकं धर्मशास्त्रेषु अपि अयं उल्लेखः अस्ति यः मनुष्यः पापकर्मणि, हत्यायां, चौर्ये, षड्यन्त्रे इत्यादिषु दोषेषु सलिप्तः भवति तस्य प्रथमतः एकः अवसरः दातव्यः यः येन सः स्वदोषं परिष्कृत्य प्रायश्चित्तं कृत्वा सत्पथे अग्रसरः भवेत्। याज्ञवल्क्यस्मृतौ दण्डविधानं प्रायश्चित्तं च अत्यन्तसूक्ष्मरूपेण वर्णितं अस्ति। अतः अस्माभिः सर्वैः एतस्य अध्ययनं कर्तव्यमेव।
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Author(s):
Dr. Surendra Mishra, Sanjeev Kumar Maddheshiya.
Country:
India
Research Area:
Adult and Continuing Education
Page No:
18-30 |
ग्रामीण स्वच्छता की दिशा में भारतीय शिक्षा की भूमिका : स्वच्छ भारत मिशन कार्यक्रम (ग्रामीण) – अयोध्या जिला के विशेष संदर्भ में
Abstract
भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच को खत्म करने और स्वच्छता को बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। यह अध्ययन अयोध्या जिले की एक केंद्रित परीक्षा के साथ, इस मिशन के लक्ष्यों को पूरा करने में भारतीय शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है। विभिन्न शैक्षिक पहलों और ग्रामीण स्वच्छता पर उनके बाद के प्रभावों का मूल्यांकन करके, अनुसंधान व्यवहार परिवर्तन को चलाने और स्थायी स्वच्छता प्रथाओं को बढ़ावा देने में शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है। अध्ययन के निष्कर्ष शैक्षिक प्रयासों के कारण जागरूकता, व्यवहार और सामुदायिक भागीदारी में काफी सुधार दिखाते हैं, जबकि संसाधन बाधाओं और सांस्कृतिक बाधाओं जैसी चुनौतियों की पहचान भी करते हैं। शोध ग्रामीण स्वच्छता में शैक्षिक हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए सिफारिशों के साथ समाप्त होता है।
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Author(s):
DR SURENDRA MISHRA, ANUPAM KUMAR MISHRA.
Country:
India
Research Area:
Adult and Continuing Education
Page No:
31-40 |
महाविद्यालयों में कौशल विकास का महत्त्व – एक अध्ययन देवीपाटन मंडल के संदर्भ में
Abstract
यह शोध पत्र कॉलेजों में कौशल विकास कार्यक्रमों के महत्व की पड़ताल करता है, विशेष रूप से देवीपाटन मंडल क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करता है। तेजी से बदलते नौकरी बाजार के साथ, अकादमिक ज्ञान और व्यावहारिक कौशल के बीच का अंतर एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। इस अध्ययन का उद्देश्य देवीपाटन मंडल के भीतर कॉलेजों में कौशल विकास की पहल की वर्तमान स्थिति, छात्रों की रोजगार क्षमता पर उनके प्रभाव और इन कार्यक्रमों को लागू करने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करना है।
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Author(s):
Rajesh Mandal.
Country:
India
Research Area:
History
Page No:
41-45 |
Women Education of Chain Somaj: A Study on Malda District in West Bengal
Abstract
The Chain is a little known ethnic community of India. They are also present in Bangladesh and Nepal in large numbers. In India, they are mostly settled in West Bengal, Bihar, Jharkhand and Uttar Pradesh. In West Bengal, the Chain Community mainly lives in Malda, Murshidabad, Nadia, North and South Dinajpur, Birbhum, Burdwan and Medinipur districts. Malda has the largest Chain population than any other district in West Bengal. In Malda district, they mainly live in Manikchak Block, Kaliachak 2nd and 3rd Block, Old Malda Block, Gajol Block, Harishchandrapur 1st and 2nd Block, Ratua 1st and 2nd Block. The total population of the Chain community in West Bengal is approximately 50 million. The Chain people traditionally live on the banks of the Ganges or some other river. Due to the change in the course of the river, they are still found in large numbers in some rural areas away from the river. Known as Chain-Mandal, the community now belongs to the Scheduled Castes list in the entire state of West Bengal. This Chain community is currently showing remarkable progress in education and economic fields. Various policies of the government have played a helpful role in the progress of this community. Especially the women of the Chain community are leaving the shackles of the society and getting enlightened by the light of education. They are moving towards cities, getting modern education in keeping with the current situation. Getting modern education in various private schools, nursing homes, and shopping malls in the city gives them the opportunity to work.
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Author(s):
Ramaswami Subramony.
Country:
India
Research Area:
English
Page No:
46-49 |
Tamil Śaivite Bhakti Literature: Devotion, Poetics, and Philosophical Underpinnings
Abstract
Tamil Śaivite Bhakti literature, spanning from the 6th to 12th centuries CE, represents one of the most profound expressions of religious devotion in Indian literary history. This paper explores the genesis, evolution, and philosophical dimensions of Tamil Śaivite Bhakti literature, focusing on its poetic fervor and theological richness. It examines the contributions of key poet-saints, including Appar, Sambandar, Sundarar, and Manikkavachakar, and analyzes their hymns in relation to social reform, metaphysical thought, and artistic aesthetics. Highlighting the literature's enduring impact, the study demonstrates its role in shaping Tamil cultural identity and influencing later devotional traditions.